जितना भर हो सकती थी उतना भर हो गई पत्ती उससे अधिक हो पाना उसके बस में न था न ही वृक्ष के बस में जितना काँपी वह पत्ती उससे अधिक काँप सकती थी यह उसके बस में था होने और काँपने के बीच हिलगी हुई वह एक पत्ती थी
हिंदी समय में अशोक वाजपेयी की रचनाएँ
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कविताएँ